राजस्थान में बाल काटने वाली चुड़ैल का पूरा सच
राजस्थान के नागौर और बीकानेर के बीच एक तहसील है, नोखा. 12 और 13 जून की दरम्यानी रात नोखा के पास हियादेसर गांव में उमा अपनी बच्ची को लेकर छत पर सोई हुई थीं. आधी रात के करीब उमा ने हल्ला मचाना शुरू किया. उनकी बच्ची के चेहरे पर पीला रंग लगा हुआ था. उमा के बाल काट लिए गए थे. उनके शरीर पर त्रिशूल का निशान बन चुका था. शिकायत के बाद मौके पर पहुंची पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. अंत में पुलिस ने इसे असामाजिक तत्वों का काम बता कर मामला खत्म कर दिया. घटना की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं. इस बीच पास के गांवों से ऐसी ही घटनाओं की खबरें आने लगीं.
अनजान आदमी महिलाओं के बाल काट कर ले जाने लगा. धीरे-धीरे मामले में नई बातें जुड़ने लगीं. मसलन बाल काटने वाला मक्खी बन कर उड़ जाता है. बाहर से ऐसे कोई पचास लोगों का गैंग आया हुआ है. या ये एक साधुओं की बड़ी टोली है. ये अलग-अलग टीम में बंट कर इस काम को अंजाम दे रहे हैं. हर बार पीड़ित द्वारा बाल काटने वाले का जो हुलिया बयान किया जाता, वो पिछले ब्योरे से बहुत अलग होता. लेकिन पहले सोशल मीडिया और फिर अखबार और टीवी के जरिए यह अफवाह फैलती रही.
पिछले एक महीने में बाल काटने की घटनाएं जैसलमेर से लेकर सिरोही तक, नागौर से जयपुर तक फ़ैल गई. मतलब एक महीने के भीतर लगभग देश के सबसे बड़े सूबे के दो-तिहाई हिस्से में इस किस्म की घटनाएं होने लगीं. हालात ये बन गए हैं कि लोग रात को पहरेदारी पर लगे हुए हैं. ये घटनाएं रुक नहीं रही हैं. पिछले 12 दिन में अकेले जयपुर जिले में 50 से ज्यादा ऐसी घटनाएं सामने आई हैं. माहौल को देख कर इस घटना पर गाने भी बन गए हैं.
ओ काईं हुग्यो सुनले संवारा, आज्या तू संसार में
छोरा-छोरी घर में सुता चोटी काटे रात में
संदिग्ध दिखने वाले हर आदमी को पीटा जा रहा है. जेब में सिन्दूर या कुमकुम रखना, बीफ रखने जितना ही खतरनाक हो चुका है. जोधपुर-बाड़मेर सीमा पर स्थित मीठड़ा खुर्द गांव की लाखोलाई नाडी वाली भीलों की ढाणी में डर के मारे लोगों ने बिल्ली को मार दिया. जोधपुर के भोपालगढ़ में लोग घर में बिल्ली के आने पर गंगाजल का छिड़काव करने में लग गए हैं.
बिल्ली अपनी संदिग्ध छवि से हमेशा परेशान रही है. ऐसा आज से नहीं है. मध्यकाल के फ्रांस में किशोर लड़कियों को कॉन्वेंट के हवाले करने का चलन था ताकि वो नन के तौर पर अपने जीवन को जीज़स की सेवा में लगा सकें. इनमें से ज्यादातर लड़कियों को उनकी मर्जी के खिलाफ कॉन्वेंट में धकेला जाता था. इसी दौरान फ्रांस के एक कॉन्वेंट में एक नन ने बिल्ली जैसी आवाज निकालनी शुरू कर दी. अगले दिन कॉन्वेंट में मौजूद कई ननों ने अपने आप को ‘म्याऊं-म्याऊं’ की आवाज निकालते पाया. फिर क्या था, एक तय समय पर ये लोग एकजुट होतीं और घंटों बिल्ली की आवाज निकाला करतीं. इससे आस-पास लोगों में दहशत फ़ैल गई. अंत में फ़ौज को मदद के लिए बुलाना पड़ा. फ़ौज ने ननों को कोड़े लगाने की धमकी दी और अचानक से बिल्ली की आवाजें आनी बंद हो गईं.
यह ‘मास हिस्टीरिया’ में दर्ज किया गया सबसे पुराना केस है.
लेकिन मध्यकाल से अब तक अनगिनत मौके ऐसे आए हैं कि जब हमारा समाज मास हिस्टीरिया या सामूहिक पागलपन का शिकार हुआ है. इतिहास की अलमारी में सबसे दिलचस्प वाकया 1518 की जुलाई का है. होली रोमन एम्पायर के स्ट्रासबर्ग के बाजार में एक महिला खरीदारी के लिए आई हुई थी. उसने अचानक अपने बाल खोले, कपड़े उतारे और नाचने लगी. धीरे-धीरे यह एक छूत की बीमारी की तरह फैलने लगा.
स्ट्रासबर्ग में नाचते लोग
शाम होने तक स्ट्रासबर्ग की सड़कों पर 400 से ज्यादा लोग नाच रहे थे. कई लोगों ने यह कहते हुए नाच रहे लोगों की हौसला अफज़ाई करनी शुरू कर दी कि थकने पर अपने आप रुक जाएंगे. यह चीज रुकी नहीं. एक दिन, दो दिन… करते-करते यह सब हफ़्तों चलता रहा. लोग नाचते-नाचते गिर जाते, फिर खड़े होते और नाचने लगते. नाचते लोगों की वजह से यातायात में बाधा न आए, इसके चलते उनके लिए ख़ास स्टेज बनाया गया. वहां संगीत की व्यवस्था भी की गई, ताकि लोगों को नाचने में सहूलियत रहे. जब कई लोग हार्ट अटैक के चलते मरने लगे, तब जाकर नाच रहे लोगों को रोका गया और इसके लिए उनके हाथ-पैर बांध देने पड़े.
आखिर मास हिस्टीरिया क्या बला है? अचानक से इतने लोग एक साथ अजीब हरकतें क्यों करने लगते हैं? जयपुर के मनोचिकित्सक गौरव राजेंद्र बताते हैंः
“मास हिस्टीरिया के ज्यादातर मामलों में अफवाह बिना किसी उद्देश्य के फैलाई जाती है. यह एक बर्फ की गेंद जैसा है. जैसे कि बर्फ की एक छोटी सी गेंद हम ढलान से लुढ़काते हैं तो उस पर तेजी से और बर्फ चिपकती जाती है. धीरे-धीरे यह और बड़ा रूप लेती जाती है.
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Sandeep Rathour
राजस्थान के नागौर और बीकानेर के बीच एक तहसील है, नोखा. 12 और 13 जून की दरम्यानी रात नोखा के पास हियादेसर गांव में उमा अपनी बच्ची को लेकर छत पर सोई हुई थीं. आधी रात के करीब उमा ने हल्ला मचाना शुरू किया. उनकी बच्ची के चेहरे पर पीला रंग लगा हुआ था. उमा के बाल काट लिए गए थे. उनके शरीर पर त्रिशूल का निशान बन चुका था. शिकायत के बाद मौके पर पहुंची पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. अंत में पुलिस ने इसे असामाजिक तत्वों का काम बता कर मामला खत्म कर दिया. घटना की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं. इस बीच पास के गांवों से ऐसी ही घटनाओं की खबरें आने लगीं.
अनजान आदमी महिलाओं के बाल काट कर ले जाने लगा. धीरे-धीरे मामले में नई बातें जुड़ने लगीं. मसलन बाल काटने वाला मक्खी बन कर उड़ जाता है. बाहर से ऐसे कोई पचास लोगों का गैंग आया हुआ है. या ये एक साधुओं की बड़ी टोली है. ये अलग-अलग टीम में बंट कर इस काम को अंजाम दे रहे हैं. हर बार पीड़ित द्वारा बाल काटने वाले का जो हुलिया बयान किया जाता, वो पिछले ब्योरे से बहुत अलग होता. लेकिन पहले सोशल मीडिया और फिर अखबार और टीवी के जरिए यह अफवाह फैलती रही.
पिछले एक महीने में बाल काटने की घटनाएं जैसलमेर से लेकर सिरोही तक, नागौर से जयपुर तक फ़ैल गई. मतलब एक महीने के भीतर लगभग देश के सबसे बड़े सूबे के दो-तिहाई हिस्से में इस किस्म की घटनाएं होने लगीं. हालात ये बन गए हैं कि लोग रात को पहरेदारी पर लगे हुए हैं. ये घटनाएं रुक नहीं रही हैं. पिछले 12 दिन में अकेले जयपुर जिले में 50 से ज्यादा ऐसी घटनाएं सामने आई हैं. माहौल को देख कर इस घटना पर गाने भी बन गए हैं.
ओ काईं हुग्यो सुनले संवारा, आज्या तू संसार में
छोरा-छोरी घर में सुता चोटी काटे रात में
संदिग्ध दिखने वाले हर आदमी को पीटा जा रहा है. जेब में सिन्दूर या कुमकुम रखना, बीफ रखने जितना ही खतरनाक हो चुका है. जोधपुर-बाड़मेर सीमा पर स्थित मीठड़ा खुर्द गांव की लाखोलाई नाडी वाली भीलों की ढाणी में डर के मारे लोगों ने बिल्ली को मार दिया. जोधपुर के भोपालगढ़ में लोग घर में बिल्ली के आने पर गंगाजल का छिड़काव करने में लग गए हैं.
बिल्ली अपनी संदिग्ध छवि से हमेशा परेशान रही है. ऐसा आज से नहीं है. मध्यकाल के फ्रांस में किशोर लड़कियों को कॉन्वेंट के हवाले करने का चलन था ताकि वो नन के तौर पर अपने जीवन को जीज़स की सेवा में लगा सकें. इनमें से ज्यादातर लड़कियों को उनकी मर्जी के खिलाफ कॉन्वेंट में धकेला जाता था. इसी दौरान फ्रांस के एक कॉन्वेंट में एक नन ने बिल्ली जैसी आवाज निकालनी शुरू कर दी. अगले दिन कॉन्वेंट में मौजूद कई ननों ने अपने आप को ‘म्याऊं-म्याऊं’ की आवाज निकालते पाया. फिर क्या था, एक तय समय पर ये लोग एकजुट होतीं और घंटों बिल्ली की आवाज निकाला करतीं. इससे आस-पास लोगों में दहशत फ़ैल गई. अंत में फ़ौज को मदद के लिए बुलाना पड़ा. फ़ौज ने ननों को कोड़े लगाने की धमकी दी और अचानक से बिल्ली की आवाजें आनी बंद हो गईं.
यह ‘मास हिस्टीरिया’ में दर्ज किया गया सबसे पुराना केस है.
लेकिन मध्यकाल से अब तक अनगिनत मौके ऐसे आए हैं कि जब हमारा समाज मास हिस्टीरिया या सामूहिक पागलपन का शिकार हुआ है. इतिहास की अलमारी में सबसे दिलचस्प वाकया 1518 की जुलाई का है. होली रोमन एम्पायर के स्ट्रासबर्ग के बाजार में एक महिला खरीदारी के लिए आई हुई थी. उसने अचानक अपने बाल खोले, कपड़े उतारे और नाचने लगी. धीरे-धीरे यह एक छूत की बीमारी की तरह फैलने लगा.
स्ट्रासबर्ग में नाचते लोग
शाम होने तक स्ट्रासबर्ग की सड़कों पर 400 से ज्यादा लोग नाच रहे थे. कई लोगों ने यह कहते हुए नाच रहे लोगों की हौसला अफज़ाई करनी शुरू कर दी कि थकने पर अपने आप रुक जाएंगे. यह चीज रुकी नहीं. एक दिन, दो दिन… करते-करते यह सब हफ़्तों चलता रहा. लोग नाचते-नाचते गिर जाते, फिर खड़े होते और नाचने लगते. नाचते लोगों की वजह से यातायात में बाधा न आए, इसके चलते उनके लिए ख़ास स्टेज बनाया गया. वहां संगीत की व्यवस्था भी की गई, ताकि लोगों को नाचने में सहूलियत रहे. जब कई लोग हार्ट अटैक के चलते मरने लगे, तब जाकर नाच रहे लोगों को रोका गया और इसके लिए उनके हाथ-पैर बांध देने पड़े.
आखिर मास हिस्टीरिया क्या बला है? अचानक से इतने लोग एक साथ अजीब हरकतें क्यों करने लगते हैं? जयपुर के मनोचिकित्सक गौरव राजेंद्र बताते हैंः
“मास हिस्टीरिया के ज्यादातर मामलों में अफवाह बिना किसी उद्देश्य के फैलाई जाती है. यह एक बर्फ की गेंद जैसा है. जैसे कि बर्फ की एक छोटी सी गेंद हम ढलान से लुढ़काते हैं तो उस पर तेजी से और बर्फ चिपकती जाती है. धीरे-धीरे यह और बड़ा रूप लेती जाती है.
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Sandeep Rathour
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