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Friday, 11 August 2017

बड़े भाग मानुष तन पावा! Tulsidaas ji





Sandeep rathour


गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि " बड़े भाग मानुष तन पावा | सुर दुर्लभ सदग्रंथनि गावा ||" अर्थात बड़े भाग्य से, अनेक जन्मों के पुण्य से यह मनुष्य शरीर मिला है जिसकी महिमा सभी शास्त्र गाते हैं कि यह देवताओं के लिए भी कठिन है | सार्थक जीवन मनुष्य जन्म कुछ अच्छा करने के लिए मिला है। इसलिए आज से ही सजग हो जाएं कि यह कहीं व्यर्थ न चला जाए।



 परमात्मा भी तभी प्रसन्न होता है, जब हम प्रयत्न-पुरुषार्थ और श्रम को एक साथ लेकर जीवन में सद्कार्य करते हैं। जीव, जगत और ब्रह्म के भेद को समझते हैं, परंतु अफसोस आज का मानव विषयों के बंधन में फंसकर अपनी कश्ती डुबो रहा है। आदि शंकरचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस जीवन के रहते हुए यदि तुमने परमात्मा के नाम का सिमरन नहीं किया, तो तुमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं है। नानक देव जी भी कहते हैं कि ऐ मेरे प्यारे बंदों, यदि अब नहीं जगे, तो कब जागोगे? एक बार पांव पसर गए, तो फिर कुछ नहीं हो सकता है। सच तो यह है कि वह परमपिता परमेश्वर हर प्रात: हमारे हृदय मंदिर में शंखनाद करता है कि हे मनुष्य! उठ और उसे प्राप्त कर जिसे प्राप्त करने के लिए मैंने तुझे इस संसार में भेजा है। लेकिन आज का मानव सत्ता, संपत्ति और सत्कार के मद में इतना चूर है कि उसे उसकी ये बात सुनाई नहीं पड़ती हैं। मैं एक निवेदन जरूर करना चाहूंगा कि इस दुनिया में हर कोई अकेला आया है, और अकेला ही जाएगा भी। इसलिए परमात्मा के बही खाते में सबका हिसाब भी अलग-अलग है। ध्यान रखें कि उसे निर्मल और भोले मन वाले लोग ही पसंद हैं। वहां कोई चालाकी या कूटनीति काम नहीं करती। यदि आज आपका कुछ अच्छा हो रहा है, तो इसमें आपके पिछले जन्मों के बोए हुए बीज हैं। आज आप जो बोएंगे, उसे कल काटेंगे। किए हुए शुभ या अशुभ कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है।जो इस संसार में आया है, उसका जाना भी निश्चित है। यहां कुछ भी शाश्वत नहीं है, सब कुछ क्षणभंगुर है, परिवर्तनशील है। इसलिए इसकी अनित्यता को समझें। यह संसार भोर के टिमटिमाते हुए तारे की तरह है, देखते-देखते नष्ट हो जाता है। मानव जीवन की भी यही स्थिति है। यदि मनुष्य काल रूपी मृत्यु को समझे, तो मुझे विश्वास है कि वह गलतियां कम करेगा। आइए, एक संकल्प लें झूठी अकड़ को छोडऩे का। ऐसा इसलिए क्योंकि बड़ी से बड़ी सफलता मनुष्य को असफलता की खाई में अंतत: पटकेगी। बस, साथ जाएगा तो किया हुआ हमारा सद्कार्य। सेवा की तरफ मानवीयता की रक्षा के लिए यदि हमारे हाथ बढ़ सकेंगे, तो यही हमारी सच्ची पूंजी होगी।मानवता सबसे बड़ा धर्म है |

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